Supreme Court stray dog case:मेनका गांधी का सुप्रीम कोर्ट पर सवाल , दिल्ली के 3 लाख आवारा कुत्तों का क्या होगा?
नमस्ते, दोस्तों! आज हम एक ऐसे मुद्दे पर बात करने जा रहे हैं, जो दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “दिल्ली में एक भी शेल्टर नहीं है, 3 लाख कुत्तों को कहां डालेंगे? ये नामुमकिन है।
“ ये बयान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के जवाब में आया है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के अंदर शेल्टर होम्स में शिफ्ट करने का निर्देश दिया गया है। आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं—क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मेनका गांधी का विरोध क्यों, और इस फैसले के क्या हो सकते हैं नतीजे।
Supreme Court stray dog case: क्या है पूरा मामला?
11 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को “बेहद गंभीर” बताते हुए एक सख्त आदेश जारी किया। कोर्ट ने दिल्ली सरकार, MCD (म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली), और नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे एनसीआर क्षेत्रों के निकायों को निर्देश दिया कि:
- सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के अंदर सड़कों से हटाकर शेल्टर होम्स में रखा जाए।
- शुरुआती चरण में 5,000 कुत्तों की क्षमता वाले शेल्टर्स बनाए जाएं।
- शेल्टर्स में नसबंदी (स्टरलाइजेशन) और टीकाकरण की व्यवस्था हो।
- कुत्तों को सड़कों, कॉलोनियों या सार्वजनिक स्थानों पर वापस न छोड़ा जाए।
- एक हेल्पलाइन बनाई जाए, ताकि कुत्तों के काटने की शिकायतें तुरंत दर्ज हों।
- जो भी इस प्रक्रिया में बाधा डाले, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, जिसमें अवमानना की कार्यवाही भी शामिल है।
कोर्ट ने ये फैसला 28 जुलाई 2025 को एक खबर पर स्वतः संज्ञान लेने के बाद लिया, जिसमें बताया गया था कि दिल्ली में कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ रही हैं, और रेबीज के कारण नवजात शिशु, बच्चे, और बुजुर्ग प्रभावित हो रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2025 में जनवरी से जून तक दिल्ली में 35,198 कुत्तों के काटने की घटनाएं और 54 रेबीज से मौतें दर्ज की गईं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में रेबीज से होने वाली मौतों का 36% हिस्सा है।
मेनका गांधी का विरोध: “ये फैसला अव्यावहारिक और गैरकानूनी है”
मेनका गांधी, जो पशु अधिकार संगठन पीपल फॉर एनिमल्स (PFA) की चेयरपर्सन हैं, ने इस फैसले को “गुस्से में लिया गया” और “अव्यावहारिक” करार दिया। उनका कहना है कि ये आदेश लागू करना न केवल मुश्किल है, बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी खतरनाक है। आइए, उनके तर्कों को विस्तार से देखें:
- शेल्टर्स की कमी:
- दिल्ली में सरकारी स्तर पर एक भी डेडिकेटेड डॉग शेल्टर नहीं है। अभी केवल 20 स्टेरिलाइजेशन सेंटर्स हैं, जो एक समय में सिर्फ 2,500 कुत्तों को हैंडल कर सकते हैं।
- 3 लाख आवारा कुत्तों को रखने के लिए कम से कम 2,000-3,000 शेल्टर्स चाहिए, जिनमें पानी, ड्रेनेज, शेड, किचन, और चौकीदार जैसी सुविधाएं हों।
- विशाल आर्थिक बोझ:
- इन शेल्टर्स को बनाने में 15,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसके अलावा, कुत्तों को खिलाने के लिए हर हफ्ते 5 करोड़ रुपये की जरूरत होगी।
- मेनका ने सवाल उठाया, “क्या दिल्ली सरकार के पास इतना पैसा है?” उन्होंने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर संसाधन जुटाना असंभव है।
- समय की तंगी:
- 8 हफ्तों में 3 लाख कुत्तों को पकड़ना और शेल्टर्स में शिफ्ट करना लॉजिस्टिकली असंभव है।
- कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया में स्थानीय लोग, जो इन कुत्तों को खाना खिलाते हैं (फीडर्स), विरोध करेंगे। इससे सड़कों पर झगड़े और अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है।
- पर्यावरणीय असंतुलन:
- मेनका ने चेतावनी दी कि कुत्तों को हटाने से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है।
- अगर दिल्ली से कुत्ते हटाए गए, तो 48 घंटों में गाजियाबाद, फरीदाबाद जैसे आसपास के इलाकों से नए कुत्ते आ जाएंगे, क्योंकि दिल्ली में खाना आसानी से मिलता है।
- कुत्ते चूहों को नियंत्रित करते हैं। मेनका ने 1880 के दशक में पेरिस का उदाहरण दिया, जहां कुत्तों और बिल्लियों को हटाने के बाद चूहों की तादाद बेतहाशा बढ़ गई थी।
- साथ ही, कुत्तों के हटने से बंदर सड़कों पर उतर सकते हैं, जिससे नई समस्याएं पैदा होंगी।
- कानूनी वैधता पर सवाल:
- मेनका ने कहा कि जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच ने इस मुद्दे पर संतुलित फैसला दिया था, जिसमें नसबंदी और टीकाकरण पर जोर था।
- अब दो जजों की बेंच ने नया आदेश दे दिया। मेनका ने पूछा, “कौन सा फैसला मान्य होगा? पहला, क्योंकि वो पहले तय हो चुका था।”
मेनका ने ये भी कहा कि ये फैसला “गुस्से में लिया गया” और इसमें तार्किकता की कमी है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को नसबंदी और टीकाकरण पर ध्यान देना चाहिए, न कि कुत्तों को शेल्टर्स में कैद करना चाहिए।
दिल्ली की मौजूदा स्थिति: शेल्टर्स और संसाधनों की कमी
दिल्ली नगर निगम (MCD) और अन्य निकायों के पास अभी कोई समर्पित डॉग शेल्टर नहीं है। कुछ प्राइवेट शेल्टर्स, जैसे संजय गांधी एनिमल केयर सेंटर (जो मेनका गांधी से जुड़ा है), मौजूद हैं, लेकिन इनकी क्षमता सीमित है। MCD के पास 20 स्टेरिलाइजेशन सेंटर्स हैं, जो एक समय में केवल 2,500 कुत्तों को हैंडल कर सकते हैं।
MCD ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे, लेकिन उनके पास संसाधनों की भारी कमी है। दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों में से 4.7 लाख की नसबंदी हो चुकी है, लेकिन बाकी की संख्या अभी भी बहुत बड़ी है। MCD ने कुछ जगहों पर चिपिंग प्रोग्राम शुरू किया है, जिसमें कुत्तों को ट्रैक करने के लिए चिप लगाए जाते हैं। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर शेल्टर्स बनाना और उनका रखरखाव करना एक बड़ी चुनौती है।
जनता और पशु संगठनों की प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे ने समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है:
- पशु अधिकार संगठन: PETA इंडिया और ह्यूमेन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स इंडिया जैसे संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को “अवैज्ञानिक” और “अप्रभावी” बताया। PETA की डॉ. मिनी अरविंदन ने कहा कि कुत्तों को शेल्टर्स में कैद करने से न तो उनकी संख्या कम होगी, न रेबीज रुकेगा, और न ही काटने की घटनाएं कम होंगी। उन्होंने नसबंदी और टीकाकरण को एकमात्र वैज्ञानिक समाधान बताया।
- पब्लिक ओपिनियन: कई लोग कुत्तों के हमलों से तंग आ चुके हैं। हाल के सालों में बच्चों और बुजुर्गों पर हमले की खबरें, जैसे कर्नाटक के हबली में एक बच्ची की रेबीज से मौत, ने लोगों का गुस्सा बढ़ाया है। X पर कुछ यूजर्स ने मेनका गांधी को ही इस समस्या का जिम्मेदार ठहराया। एक यूजर ने लिखा, “मेनका गांधी की वजह से स्ट्रे डॉग्स का आतंक बढ़ा है।” दूसरी तरफ, कुछ लोग मेनका के तर्कों से सहमत हैं और कहते हैं कि शेल्टर्स में कुत्तों की हालत और खराब होगी।
- दिल्ली सरकार का रुख: दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर है, और सरकार जल्द ही एक नीति बनाकर इस आदेश को लागू करेगी। विकास मंत्री कपिल मिश्रा ने इसे “रेबीज और कुत्तों के डर से मुक्ति” का रास्ता बताया। MCD ने 12 विधानसभाओं में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसमें 70-80% कुत्तों की नसबंदी और 20 नए शेल्टर्स बनाने की योजना है।
क्या हो सकता है समाधान?
ये मुद्दा पशु कल्याण और मानव सुरक्षा के बीच का टकराव है। सुप्रीम कोर्ट का मकसद लोगों को रेबीज और कुत्तों के हमलों से बचाना है, लेकिन मेनका गांधी और पशु संगठनों का कहना है कि जल्दबाजी में लिया गया ये फैसला नई समस्याएं खड़ी कर सकता है। कुछ संभावित समाधान हो सकते हैं:
- बड़े पैमाने पर नसबंदी और टीकाकरण: कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका है। सरकार और एनजीओ को मिलकर इसे तेज करना चाहिए।
- कम्युनिटी फीडिंग प्रोग्राम: सड़कों पर कुत्तों को खाना देने वालों को रेगुलेट करना चाहिए, ताकि कुत्ते आक्रामक न हों।
- पब्लिक अवेयरनेस: लोगों को रेबीज और कुत्तों के व्यवहार के बारे में शिक्षित करना जरूरी है।
- संसाधनों का इंतजाम: अगर शेल्टर्स बनाना ही है, तो सरकार को प्राइवेट पार्टनरशिप और फंडिंग की व्यवस्था करनी चाहिए।
एक संतुलित रास्ता जरूरी है
मेनका गांधी का सवाल बिल्कुल जायज है—3 लाख कुत्तों को कहां रखेंगे? बिना पर्याप्त शेल्टर्स, फंडिंग, और लॉजिस्टिक्स के ये आदेश लागू करना मुश्किल है। लेकिन दूसरी तरफ, सड़कों पर कुत्तों का खतरा भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। ये वक्त है कि सरकार, पशु संगठन, और जनता मिलकर एक ऐसा समाधान निकालें जो इंसानों और जानवरों दोनों के लिए मानवीय हो।
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