Aurangabad Independence Day 1947:आज़ादी की कहानी-
हर साल 15 अगस्त को भारत आज़ादी के रंग में रंग जाता है, और तिरंगा गर्व से आसमान छूता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, महाराष्ट्र का एक ऐसा शहर भी है जहां आज़ादी का जश्न 15 अगस्त 1947 को नहीं मनाया गया था? यह शहर है औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर)। उस दिन यहां भारतीय तिरंगे की जगह हैदराबाद रियासत का झंडा लहराया गया था। यह कहानी बताती है कि कैसे कुछ हिस्सों में आज़ादी की सुबह थोड़ी देर से आई।
Aurangabad Independence Day 1947– औरंगाबाद का निज़ाम से रिश्ता
मुगलकाल में फले-फूले औरंगाबाद को 17वीं सदी में मलिक अंबर ने बसाया और बाद में औरंगज़ेब के नाम पर इसका नाम पड़ा। ब्रिटिश राज के समय तक यह हैदराबाद रियासत का हिस्सा था, जिस पर निज़ामों का शासन था। हैदराबाद रियासत में आज का तेलंगाना, महाराष्ट्र का मराठवाड़ा (जिसमें औरंगाबाद भी शामिल था) और कर्नाटक के कुछ हिस्से आते थे।
हिंदू बहुसंख्यक आबादी के बावजूद सत्ता मुस्लिम शासकों के हाथ में थी। आखिरी निज़ाम, मीर उस्मान अली खान, अपनी अपार संपत्ति और स्वतंत्र रहने की महत्वाकांक्षा के लिए मशहूर थे।
15 अगस्त 1947 – बाकी भारत में जश्न, औरंगाबाद में सन्नाटा
जब दिल्ली के लाल किले पर पंडित नेहरू ने तिरंगा फहराया और देशभर में आज़ादी का जश्न छाया, औरंगाबाद में माहौल बिल्कुल अलग था। निज़ाम ने भारत में शामिल होने से साफ़ इनकार किया था और खुद को एक स्वतंत्र शासक घोषित किया था। नतीजा – न तिरंगा, न राष्ट्रीय उत्सव। उस दिन औरंगाबाद समेत पूरी हैदराबाद रियासत में असफ़िया झंडा लहरा रहा था – पीली पृष्ठभूमि पर हरे-सफेद डिज़ाइन और चांद-तारा।
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देरी के पीछे की वजह – निज़ाम की महत्वाकांक्षा
उस्मान अली खान दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में गिने जाते थे। उनका सपना था हैदराबाद को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बनाए रखना, चाहे ब्रिटिश संरक्षण में हो या मुस्लिम बहुल पाकिस्तान जैसा। हालांकि, भारतीय नेताओं – खासकर सरदार पटेल – का लक्ष्य था एक एकीकृत भारत। नवंबर 1947 में स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट हुआ, लेकिन हालात बिगड़ते रहे। रजाकार नाम का निज़ाम समर्थक बल, भारत में विलय के समर्थकों पर हिंसा करने लगा।
– ऑपरेशन पोलो
तनाव आखिरकार सितंबर 1948 में चरम पर पहुंचा। 13 सितंबर को भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो शुरू किया – सैन्य अभियान जिसने सिर्फ़ पांच दिन में निज़ाम को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया।
17 सितंबर 1948 को हैदराबाद आधिकारिक तौर पर भारत में शामिल हुआ। उसी दिन पहली बार औरंगाबाद में तिरंगा लहराया गया – और लोगों ने सच्चे मायनों में आज़ादी महसूस की।
आज का औरंगाबाद –
1956 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद औरंगाबाद महाराष्ट्र का हिस्सा बना। आज यह अजंता-एलोरा गुफाओं जैसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज स्थलों के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके इतिहास में वह पन्ना भी दर्ज है जब आज़ादी बाकी भारत से एक साल बाद आई। भारत की आज़ादी सिर्फ़ 15 अगस्त 1947 की घटना नहीं थी, बल्कि एक लंबी प्रक्रिया थी जिसमें कई रियासतों का संघर्ष और बलिदान शामिल था। औरंगाबाद की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि एकता और स्वतंत्रता के लिए धैर्य और दृढ़ता दोनों जरूरी हैं।