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Taazatime18 > ताज़ा > “One Nation, One Election”-“एक देश, एक चुनाव,लोकतंत्र को सशक्त बनाने का नया कदम या चुनौतीपूर्ण प्रस्ताव?”
ताज़ाराजनीति

“One Nation, One Election”-“एक देश, एक चुनाव,लोकतंत्र को सशक्त बनाने का नया कदम या चुनौतीपूर्ण प्रस्ताव?”

"One Nation, One Election"-लेकिन बाद में राज्यों और केंद्र सरकार की अलग-अलग समय पर अस्थिरता के कारण चुनाव चक्र अलग हो गए। अब इसे फिर से एकीकृत करने की मांग की जा रही है।

vishalmathur
Last updated: 2025/07/28 at 1:37 PM
vishalmathur
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4 Min Read
One Nation, One Election bill
image source :-social media
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One Nation, One Election: लोकतांत्रिक सुधार या व्यावहारिक चुनौती?

Contents
One Nation, One Election:-क्या यह व्यवहारिक है?”इस विचार की पृष्ठभूमि“एक देश, एक चुनाव” के लाभOne Nation, One Election:-इस विचार की चुनौतियाँवर्तमान राजनीतिक दृष्टिकोणन्यायपालिका और अदालतों का दृष्टिकोणअन्य प्रासंगिक मुद्दे

“एक देश, एक चुनाव” (वन नेशन, वन इलेक्शन) भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणाली में सुधार के उद्देश्य से एक महत्त्वपूर्ण पहल है। यह विचार पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने की बात करता है। वर्तमान में यह विषय भारत में राजनीति और न्यायपालिका दोनों में गर्म चर्चा का विषय बना हुआ है।

One Nation, One Election:-क्या यह व्यवहारिक है?”

One Nation, One Election BILL
image source – social media

इस विचार की पृष्ठभूमि

भारत में स्वतंत्रता के बाद 1952 से लेकर 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित होते थे। लेकिन बाद में राज्यों और केंद्र सरकार की अलग-अलग समय पर अस्थिरता के कारण चुनाव चक्र अलग हो गए। अब इसे फिर से एकीकृत करने की मांग की जा रही है।

“एक देश, एक चुनाव” के लाभ

  1. चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनाव होने से सरकारी धन और संसाधनों की बड़ी बर्बादी होती है। एक साथ चुनाव होने से इसे रोका जा सकता है।
  2. विकास कार्यों में निरंतरता: लगातार चुनाव होने से आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं।
  3. चुनावी प्रक्रिया का सरलीकरण: नागरिकों, राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के लिए एक साथ चुनाव आयोजित करना अधिक सुविधाजनक हो सकता है।
  4. स्थिरता और शासन: एक साथ चुनाव से सरकारों के पास लंबे समय तक योजनाएँ बनाने और उन्हें लागू करने का मौका मिलेगा।

One Nation, One Election:-

इस विचार की चुनौतियाँ

  1. संवैधानिक बाधाएँ: संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172 और 174 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
  2. व्यवहारिक कठिनाइयाँ: सभी राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराना और उनके कार्यकाल का समायोजन एक जटिल प्रक्रिया है।
  3. क्षेत्रीय मुद्दे: अलग-अलग राज्यों के स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय चुनावों में दब सकते हैं।
  4. चुनावी अधोसंरचना: एक साथ चुनाव के लिए बड़ी संख्या में ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी।

वर्तमान राजनीतिक दृष्टिकोण

यह विचार वर्तमान सरकार द्वारा जोर-शोर से उठाया जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस पर विचार-विमर्श के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई है। हालांकि, विपक्षी दल इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे क्षेत्रीय दलों की भूमिका कमजोर हो सकती है।

न्यायपालिका और अदालतों का दृष्टिकोण

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” के कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर गौर करने की बात कही है। अदालत ने इस विषय पर विशेषज्ञों और संविधान विशेषज्ञों की राय लेने का सुझाव दिया है।

अन्य प्रासंगिक मुद्दे

  1. महिला आरक्षण: “एक देश, एक चुनाव” के साथ-साथ महिला आरक्षण बिल को लेकर भी संसद में बहस जारी है।
  2. यूसीसी (समान नागरिक संहिता): सरकार के सुधारात्मक एजेंडे में यह भी शामिल है।
  3. चुनावी पारदर्शिता: ईवीएम और वोटिंग प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

“एक देश, एक चुनाव” विचार भारतीय लोकतंत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, लेकिन इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, प्रशासनिक और व्यवहारिक पहलुओं पर गहराई से विचार करना आवश्यक है। यह विचार जितना सशक्त दिखता है, उतना ही जटिल भी है। इसे लागू करने के लिए राजनीतिक सहमति और व्यापक योजना की आवश्यकता होगी।

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